top of page

क्यों है...

  • Writer: Anilesh Kumar
    Anilesh Kumar
  • Feb 28
  • 1 min read

एक लहर सी है समंदर में

कोई बताए हवा नाराज़ क्यों है


शोर तो सुन चुका सारा शहर है

खामोशी में ये आवाज़ क्यों है


सितारे घुट रहे हैं चाँद के साए में

अंधेरों को इन पर नाज़ क्यों है


मुद्दतें बीतीं खुद से बिछड़े हुए

न जाने खुद की याद आज क्यों है

 
 
 

Recent Posts

See All
गुनाह

मुझको समझने का गुनाह कर अगर मोहब्बत है तो बेपनाह कर मेरे ऐब ढूंढने में तो लगा है ज़माना मेरी खूबियों का तू तो हिसाब कर ये अंधेरा...

 
 
 
क़ैद

एक टूटा हुआ तारा चुपचाप जा रहा है उसे ख़बर है कि मुझे कोई ख़बर नहीं ये आँखें दीवार को छत समझती हैं तारों भरे आकाश पर मेरी नज़र नहीं ...

 
 
 
मंज़िल

हम अकेले होते कहाँ हैं ख्वाबों में जागते हैं, सोते कहाँ हैं भीड़ कर देती है तन्हा रूह को वैसे तो साथ चलता सारा जहाँ है मील के पत्थरों में...

 
 
 

Comments


bottom of page