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क्यों है...

Writer: Anilesh KumarAnilesh Kumar

एक लहर सी है समंदर में

कोई बताए हवा नाराज़ क्यों है


शोर तो सुन चुका सारा शहर है

खामोशी में ये आवाज़ क्यों है


सितारे घुट रहे हैं चाँद के साए में

अंधेरों को इन पर नाज़ क्यों है


मुद्दतें बीतीं खुद से बिछड़े हुए

न जाने खुद की याद आज क्यों है

 
 
 

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