क्यों है...
- Anilesh Kumar
- Feb 28
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एक लहर सी है समंदर में
कोई बताए हवा नाराज़ क्यों है
शोर तो सुन चुका सारा शहर है
खामोशी में ये आवाज़ क्यों है
सितारे घुट रहे हैं चाँद के साए में
अंधेरों को इन पर नाज़ क्यों है
मुद्दतें बीतीं खुद से बिछड़े हुए
न जाने खुद की याद आज क्यों है
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