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मंज़िल

  • Writer: Anilesh Kumar
    Anilesh Kumar
  • Feb 28
  • 1 min read

हम अकेले होते कहाँ हैं

ख्वाबों में जागते हैं, सोते कहाँ हैं


भीड़ कर देती है तन्हा रूह को

वैसे तो साथ चलता सारा जहाँ है


मील के पत्थरों में कुछ नहीं रखा

सुकूं जहाँ मिले, मंज़िल वही है

वरना सफ़र में कुछ भी नहीं है

 
 
 

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