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गुनाह

  • Writer: Anilesh Kumar
    Anilesh Kumar
  • Mar 17
  • 1 min read

मुझको समझने का गुनाह कर

अगर मोहब्बत है तो बेपनाह कर


मेरे ऐब ढूंढने में तो लगा है ज़माना

मेरी खूबियों का तू तो हिसाब कर


ये अंधेरा मुझको भी रास नहीं आता

तू मेरा हाथ थाम, आफ़ताब कर

 
 
 

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